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Kunal Goswami

Abstract

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Kunal Goswami

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लानत है

लानत है

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पिंजरे में घर लानत है 

काट दिए पर लानत है 


सर का खून ये कहता है 

चौखट के सर लानत है 


कैसे कैसौं पे आया 

ऐ दिल तुझ पर लानत है 


झेल न पाई इक बारिश 

इस छतरी पर लानत है 


घर के बाहर ठीक है सब 

घर के अन्दर लानत है 


मज़हब पर ये देश बँटा 

बँटवारे पर लानत है 


इक पँछी का घर उजड़ा 

दरवाज़े पर लानत है।


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