ग़ज़ल
ग़ज़ल
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तीरगी के सबब देखो क्या हो गया
मेरा साया भी मुझसे जुदा हो गया
और किस से करूँ आरज़ू ए वफा
बावफा ही यहाँ बेवफ़ा हो गया
ज़िक्र तेरा हुआ मेरे शेरों में तो
काफिया फिर ग़ज़ल का खफ़ा हो गया
मयकदे की मुझे अब ज़रूरत नहीं
आपको देख कर ही नशा हो गया
इक नज़र देख कर सामने से गयी
ज़ख्म दिल का दोबारा हरा हो गया
अब खुदा को कहाँ मानता है वो कुछ
आदमी जब यहाँ पर ख़ुदा हो गया
चाहता था उसे बावलों की तरह
चाहते चाहते बावला हो गया
