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Archana Verma

Abstract

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Archana Verma

Abstract

लाज़मी सा सब कुछ

लाज़मी सा सब कुछ

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मुझे वो लाज़मी सा सब कुछ दिलवा दो

जो यूं ही सबको मिल जाता है

न जाने कौन बांटता है सबका हिस्सा

जिसे मेरे हिस्सा नज़र नहीं आता है 


बहुत कुछ गैर लाज़म तो मिला

अच्छे नसीबो से

पर लाज़मी सा सब कुछ

मेरे दर से लौट जाता है

 

न छु सकूँ जिसे , बस

महसूस कर सकूँ

क्यों ऐसा अनमोल खज़ाना

मेरे हाथ नहीं आता है

 

लाज़मी है प्यार,

अपनापन और रिश्ते,

जिसका बिना

गैर लाज़मी सा नाम,

शोहरत और पैस

मेरे काम नहीं आता है

 

मुझे ये सब लाज़म सा दिलवा दो

जो सबको यूं ही मिल जाता है।


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