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Khushi Saifi

Drama Others Abstract

2.0  

Khushi Saifi

Drama Others Abstract

ला-हासिल मंज़िल

ला-हासिल मंज़िल

2 mins
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सुना था पढ़ा था किताबों में कभी ये
लड़का-लड़की हो नही सकते दोस्त कभी
पर उन दोनों में दोस्ती थी अच्छी
कमसिन थे वो अभी कच्ची उम्र थी।

बात हुई सच, दोस्ती नही रही थी दोनो में
ना जाने कब बदल गए लड़की के एहसास
मन ही मन चाहने लगी थी लड़के को
पर कही नही कभी दिल की बात अपनी।

लड़के ने सोचा ये पगली है कोई
लिया उसे हँसी खेल में ही बस
लड़की कहती रहती मेरे ही हो तुम
पर वो हंसकर कहता, जाने भी दो तुम।

कुछ टूट चुका था दिल उस पगली का
बोली, कभी नही मिलना अब हम दोनों को
जा चुकी थी वो उसकी जिंदगी से यूँ
पर ना जा सकी लड़के की यादों से जाने क्यूं।

अब बारी आयी थी उस लड़के की
खास लगी थी अब वो उसके दिल को
फिर तड़पा रोया दुआओं में मांगा
पर वो हासिल कुछ ना हो पाया।

कितनी रातें, बातें, बरसातें गुज़र गयी
यादों में अब भी वही रची बसी थी
आखिर एक दिन दुआएं रंग ले ही आयी
फिर से दिखी अचानक उसे वो लड़की।

लगी उसे कुछ बदली बदली सी
शायद पहले से भी ज़्यादा प्यारी सी
बदल ही तो चुकी थी अब वो लड़की
लड़के से ज़्यादा प्यारी थी अब इज़्ज़त अपनी।

लड़के को लगा पा ली उसने अपनी दुनिया
और लुटाने लगा मुहब्बतें उस लड़की पर
जीने लगा था वो पहले से ज़्यादा कुछ यूं
पर पहले से ज़्यादा उस पर मरने लगा था।

पिघलने लगी थी लड़की उसकी चाहतों से
फिर से सजाने लगी थी ख्वाब और सपने
अब दोनों चलने लगे थे उन राहों पर
जहां से कभी भी हासिल नही थी मंज़िल।

एक दिन टूट जाना है दोनों के दिलों को
उस दिन बिछड़ जाना है दोनों के दिलों को
एक नदी के दो किनारे हैं वो कुछ ऐसे
जो साथ हो कर भी कभी साथ नही।

 


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