वो बावली सी लड़की
वो बावली सी लड़की
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कभी आटे को गूँथती तो कभी रोटी को बेलती,
वो लड़की उसी में अपनी कहानियों को ढूंढती,
ना जाने कैसी है वो बावली सी लड़की।
दिल की आवाज़ और अपनी ख्वाहिशों को,
मन में संजोती तो कभी पन्ने पर उतारती,
ना जाने कैसी है वो बावली सी लड़की।
कच्ची उम्र में रिश्तों को यूँ सीखती और जीती
अपनों की ख्वाहिशों को आँखों पर सजाती,
ना जाने कैसी है वो बावली सी लड़की।
किसी की मोहब्बत को यूँ दिल में छुपाये,
उसे हँस कर कहती कि मुझे भूल जाये,
ना जाने कैसी है वो बावली सी लड़की।
तमन्नाओं के सागर में यूँ गोते लगाती,
फिर मझधार में उन्हें वही छोड़ आती,
ना जाने कैसी है वो बावली सी लड़की।
उम्मीदों के साथ वो यूँ खुले दिल से जीती,
ज़िन्दगी की हक़ीक़त को खुद ही समझ जाती,
बस ऐसी ही है वो बावली सी लड़की।