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jyoti pal

Abstract

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jyoti pal

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क्या सोचा है?

क्या सोचा है?

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किसी को गलत बोलने से मैं अपने आपको देखती हूँ कि मुझे कैसा लगता?

किसी के बारे में गलत सोचने से पहले मैं सोचती हूँ कि

मैं कितनी सही हूँ ?

खुद वही फैसले करती हूँ जो मैं अपने बच्चो से

अपेक्षा रखती हूँ

बच्चों से वही अपेक्षा रखती हूँ जितना हमने

अपने माता - पिता का कहा माना? 

मैं इन्सानियत के नाते सभी लोगों को बराबर मानती हूँ

और इन्सान को उसके गुणों व आचरण से उसकी पहचान ,

धर्म जाति,परिवार,संस्कार, औकात जानती हूं।

मै इंसान हूँ इन्सान को ही इन्सान मानती हूँ।

मैंने ये सोचा है क्या आपने सोचा है?

या हँस कर अपनी बारी का इंतजार करने का सोचा है

बस! बदलाव होगा जरुर मैं यही विचार

मैं अपने हृदय में पालती हूँ





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