क्या से क्या हो गए हम
क्या से क्या हो गए हम
अहिंसा के पुजारी हुआ करते थे
कभी अब संसद में भी मारपीट करने लगे हैं
मीठी वाणी से स्वागत करते थे सबका
अब गाली गलौज से "आदर" करने लगे हैं
उदारता ही हमारी पहचान हुआ करती थी
अब संकीर्णता के दलदल में धंसने लगे हैं
बड़ों का सम्मान हमारी संस्कृति का हिस्सा था
अब माता पिताओं को वृद्धाश्रम भेज रहे हैं
महिलाओं की पूजा करना सिखाया था हमें
अब रावण दुर्योधन को भी मात करने लगे हैं
ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करते थे विश्व को
अब मूर्ख, अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रहे हैं
सच्चाई ईमानदारी की मिसाल हुआ करते थे
अब झूठ बोलने की फैक्ट्री खोलकर बैठे हुए हैं
आत्म मंथन करने का अवसर आ गया है मित्रों
कि हम पहले क्या थे और अब क्या हो गए हैं.