क्या मैं सही कर रहा हूँ
क्या मैं सही कर रहा हूँ
अंदर ही अंदर खुद से लड़ रहा हूँ .
कई कोशिशें की इससे निकलने की,
पर अब कमज़ोर पड़ रहा हूँ .
बस तुम्हारी ही कमी महसूस होती है,
जिन भी रास्तों से गुज़र रहा हूँ .
ऐसा एक भी पल नही गुजरा,
जिस पल मैं तुम से दूर रहा हूँ .
सारे ज़ायके निकल चुके है ज़िंदगी से,
बस तुम्हारी यादों के सहारे पल रहा हूँ .
तुम्हारे और मेरे बीच जैसे कोई बादल आ गया हो,
आजकल अधूरी शामों की तरह ढल रहा हूँ .
परायों सा बर्ताव होगया है मेरे सभी अपनों का,
सबकी आंखों में अब खल रहा हूँ .
एक अजनबी ने हाथ तो थामा है मेरा,
पर क्या मैं उसके साथ सही कर रहा हूँ .?

