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Preshit Gajbhiye

Romance

4  

Preshit Gajbhiye

Romance

क्या मैं सही कर रहा हूँ

क्या मैं सही कर रहा हूँ

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अंदर ही अंदर खुद से लड़ रहा हूँ .

कई कोशिशें की इससे निकलने की,

पर अब कमज़ोर पड़ रहा हूँ .


बस तुम्हारी ही कमी महसूस होती है,

जिन भी रास्तों से गुज़र रहा हूँ .

ऐसा एक भी पल नही गुजरा,

जिस पल मैं तुम से दूर रहा हूँ .


सारे ज़ायके निकल चुके है ज़िंदगी से,

बस तुम्हारी यादों के सहारे पल रहा हूँ .

तुम्हारे और मेरे बीच जैसे कोई बादल आ गया हो,

आजकल अधूरी शामों की तरह ढल रहा हूँ .


परायों सा बर्ताव होगया है मेरे सभी अपनों का,

सबकी आंखों में अब खल रहा हूँ .

एक अजनबी ने हाथ तो थामा है मेरा,

पर क्या मैं उसके साथ सही कर रहा हूँ .?


 



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