प्रेम
प्रेम
सोचा, प्रेम के कुछ दीये जला दूँ
यहाँ-वहाँ
तुमने डुगडुगी बजा दी
जरूरत नहीं...
प्रेम ही प्रेम है हर तरफ।
सोचा, मन की दवात में
प्रेम की रोशनाई भर कर
रख दूँ यहाँ-वहाँ
तुमने डुगडगी बजा दी
बहुत प्रेम है..बहुत प्रेम है।
तुम्हारी डुगडुगी के शोर से
मायूस हो
कलम उठा ली मैंने
तुम फिर आ गये
डुगडुगी बजाते हुए,
किताबों से भरी है दुनिया
जरूरत नहीं है
कुछ लिखने की।
कलम ने तुम्हें घूर कर देखा
और देखती रही कुछ देर तक
अब तुम्हारी बारी थी
डुगडुगी मायूस थी तुम्हारी,
और मेरी कलम
डुगडुगी बजा रही थी प्रेम की
गली में फागुन का जोगी
प्रेम का इकतारा बजा रहा था।।