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Saini Nileshkumar

Abstract

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Saini Nileshkumar

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क्या लिखूं उसके बारे मैं

क्या लिखूं उसके बारे मैं

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क्या लिखूं उसके बारे मै 

वो तो खामोश खड़ी 

बदनामी  के डर से बड़ी दूर खड़ी है  


बड़ी सहमी सी  सखी खड़ी है मेरी 

कहीं में इज़हार ना कर दूं

सरे आम ऐ दिल उसके नाम करदु इस डर से 


भीड़ मैं हरा दुप्पटा पहनके खड़ी है 

कही मैं उसका संगीत सुन ना लूं 

अपने पैरों की पायल निकाल के चली है 


महबूब मेरे मुझसे छिपकर चले है 

क्या ? कुछ अर्ज कर दूं 

जिससे वो चिल्ला के चले आये 

बदनामी का डर अपने पीछे छोड़े आये।


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