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Shabbir Beguwala

Tragedy

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Shabbir Beguwala

Tragedy

क्या क़रोना क़हर है?

क्या क़रोना क़हर है?

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यह कैसा शहर  है ?

सन्नाटा हर पहर है

ना कोई चहल पहल है

क्या कुदरत का कोई कहर  है ?

                       

क्या किसी बीमारी का टोना है?

यह कैसा सब का रोना है ?

यह कैसी अनहोनी का होना है ?

यह कैसा चैन का खोना है ?


इंसान ! तू हुआ इतना मशगूल,

तेरे ईमान पे पड़ गयी धूल,

शुग़ल में तू रब को गया भूल ।

गिरा दिया है तू अपना ही मूल।

                             

गुनाह इस कदर बढ़ते गए

घमंड इस तरह चढ़ते गए

आपस में यूँ लड़ते रहे

धर्मों-ईमान, बदनाम करते गए !


ज़मीर कहता गया यूँ करोना

शैतान, भटकाता गया कि दरोना।

रब ने फिर उनकी याद दिलायी

क़हर बरसाया क़रोना !

                             

क़रोना का क़हर बरस रहा है

इलाज को तू अब तरस रहा है ।

भाई, भाई को डँस रहा है

झूठे तकब्बुर में तू धँस रहा है !


लौट जा ! राहे-ईमान पे तू !

रब से माफ़ी माँग ले तू !

तलब रहमत उनकी करले तू !

वर्ना बहुत पछताएगा तू !!



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