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umesh kulkarni

Abstract

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umesh kulkarni

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क्या बात हो गई

क्या बात हो गई

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दिन के उजाले में घनी रात हो गई

लोगों में अब बद-तमीज़ी आम बात हो गई।


बदले हुए दुनिया के बदले तौरों की कसम

शराफत परदे में और हया बेपर्दा हो गई।


लफ़्ज़ों के बदले हुए मतलबों की कसम

मक्कारी अब होशियारी और रिश्वत मामूल हो गई।


लगता है अब लहू ने भी रंग बदल लिया है

रंग नापने की औज़ार की किल्लत जो हो गई।


कंई बातें अब मेरे साथ ही जाएँगी

जज्बात दबाने की आदत सी जो हो गई।


अंधेरी रात में एक चिराग गर दिख जाए

उसे तूफ़ानों से बचाने की जरूरत हो गई।


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