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प्रभात मिश्र

Abstract

4.8  

प्रभात मिश्र

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कविता

कविता

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अव्यक्त भावनाओं की

सहज अभिव्यक्ति हैं

गूढ़ को सहज करे 

कविता की शक्ति हैं


कातर हृदय की 

रसाभिव्यक्ति हैं

सर्वत्र सुलभ सर्वदा

कवि ही वह व्यक्ति हैं


वीर रस वरण करें

शिरा में रक्त खौल जावें

शांत में नहा कर 

जन रंजन कर सकती हैं


प्रतिष्ठित नख शिख करें

श्रृंगार में जो डूब जाये 

रसिकों की संयोग से

 बनी ना निवृत्ति हैं


करुण वियोग में जो

अश्रुधार खींच लाये

विभत्स जुगुप्सा से तो

हिली चित्त वृत्ति हैं


सहज हास उपजावे

हास के अवलंबन से

ओष्ठ फड़कने लगे तो

रौद्र की आवृत्ति हैं 


वात्सल्य हैं भक्ति हैं

प्रेम की प्रवृत्ति हैं 

कवि हृदय की यह

कल्पना शक्ति हैं 


स्थायी भाव मिले

विभाव अनुभाव से

भाव संचारी हो तब

रस की निष्पत्ति हैं


अव्यक्त भावनाओं की

सहज अभिव्यक्ति हैं

संवेदी हृदय में बसी

कविता की शक्ति हैं।


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