कविता -समय रेखा
कविता -समय रेखा
अंधेरों की क्या औकात
जब सूरज भी जाया करता है ?
गम की क्या औकात
जब खुशियों का समय भी चला जाया करता है?
जिन्दगी प्यारी है,
पर प्यार ही बरसाएगी ऐसी उम्मीद मत रखना।
नफ़रत भी दे ये जिन्दगी,
तो आशा की लौ को अपनी नफ़रत से कभी मत ढकना।
राहों की खुशबू चारों तरफ महसूस करो,
अपनापन जताओ और अपने दिल में प्यार भरो।
कठिनाइयों आए तो डरो नहीं ,
कोई लड़ना चाहे तो लड़ो नहीं।
समय एक सा नहीं रहता,
रहता है यह हर वक़्त बदलता,
समय रुकता नहीं रहता है हर पल यह चलता।
तो चलो समय के साथ रुकने की जरूरत नहीं,
जहाँ जो रुके तुम तो हमेशा के लिए रुक जाओगे,
कितनी भी कोशिश करने पर भी समय वापस नहीं ला पाओगे।
सूरज को देखो नहीं बल्कि सूरज सा बनो,
अरमान है चमकने का तो सूरज सा जलो।
दिन रात को अपने हिसाब से मत चलाओ,
नींद को त्याग दो उसे अपना गुलाम बनाओ।
सफलता की लालसा मत रखो,
काम करने की ख्वाहिश जगाओ।
मेहनत की आदत पड़ जाए तो,
अपनी मेहनत को और बढ़ाओ।
काम करने की ख्वाहिश बढ़ जाए तो,
अपने काम को और बढ़ाओ।
काम और मेहनत की सीढ़ी अगर पार हुई,
तो सफलता उसी रास्ते पड़ी मिलेगी
और सफलता मिल जाने पर
तुम्हें मेहनत और परिश्रम की कमी खलेगी,
तलाशोगे फिर से उन्हीं दिनों को,
जब दिन और रात में फर्क किए बगैर
तुम परिश्रम करते रहते थे,
उस वक़्त भी जब तुम जानते भी नहीं थे कि
सफलता तुम्हारे हाथ लगेगी,
तब भी तुम दिन दिन रात लगे रहते थे।
तलाशोगे फिर वही दिन,
क्योंकि सफलता का रास्ता अनोखा होता है,
इसमें मंज़िल से ज्यादा रास्ते का मज़ा होता है
तो रास्ता जिसने समझ लिया उसी ने जीवन को भी समझा
और जिसने जीवन समझ लिया उसी ने मानव धर्म समझा।