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Mridula -

Abstract

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कमज़ोर सी क्यों ?

कमज़ोर सी क्यों ?

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बुझ बुझ कर जलना 

रुक रुक कर चलना।

बैठ बैठ कर उठना।

सब ही एक प्रयास है।

बुझी हुई उम्मीदों में भी,

शायद जीने की कोई आस है।


रास्तों की ऊबड़ खाबड़,

मन की बेचैनी,

अहम का जोर,

और धैर्य की कमी।

दिल में एक किलस,

और आँखों में नमी।

न जाने क्या चल रहा है ?


दिल में कुछ जल रहा है,

सुरक्षा की कमी है।

गंदगी सी जमी है।

साफ़ कैसे नज़र आए,

कैसे सब ठीक किया जाए ?


क्या कुछ एहसासे कमतरी है ?

क्यों ज़िंदगी में गड़बड़ी है ?

कौन सी मुसीबत अब खड़ी है ?

क्या कुछ मुझको मिल गया,

न जाने कहाँ मेरा दिल गया ?


मैं वही हूँ जिसके ख्वाब बड़े थे

जो चट्टान की तरह खड़े थे 

हर गलत बात पर लड़े थे।

क्या मैं वही हूँ ?

आज कमज़ोर सी क्यों हूँ ?

आज कमज़ोर सी क्यों हूँ ?

आज कमज़ोर सी क्यों हूँ?


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