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Mridula -

Abstract

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Mridula -

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खुद को पहचानो

खुद को पहचानो

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जिन्दगी है,

तूफानी हवा नहीं है,

जो तेज़ी से बह रहे हो

रूको!ज़रा, थमो भी,


इधर-उधर देखो भी,

दिल को अपने टटोलो भी,

ऊपर वाले से डरो भी,

कई बार थोड़ा झुको भी।


इतने तनो मत,

इतने बनो मत,

हमसे जीत भी गए,

तो क्या पा लोगे ?


उसके सामने तो,

शायद तुम जरूर हारोगे।

सूरज नहीं बन सकते हम,

अगर बनो भी तो रौशन करना सीखो,

किसी को जलाना मत सीखो।


चाँदनी कमज़ोर है,

ऐसा मत सोचो,

थोड़ा दिल से भी अपने आप को तोलो,

थोड़ा मन से दूसरो को टटोलो।


समझो,जानो,पहचानो।

शीतलता ठंडक है,

चाँदनी भी रौशन है,

 वह भी रात की रानी है।


उठो थोड़ा ऊपर,

नीचे फेंक दो अभिमान,

इतने भारी क्यों हो?

अहंकार में डूबे क्यों हो ?


हल्के बन जाओ,

थोड़ी मानवता लाओ।

साक्षी है ऊपरवाला,

अगर मुझमें है कोई खोट,

तो मुझे जरूर लगेगी चोट।


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