कवि
कवि
जैसे तम मिटाता रवि है
वैसे सत्य बताता कवि है
जो दिखाता छद्म छवि है
वो हो सकता नही कवि है
जो झूठ को बताता सही है
वो होता सत्य का अरि है
जो झूठ की लिखता बही है
वो होता विषैला अहि है
वो करता विषैली नदी है
पर जो होता सच्चा कवि है
अपयश चिंता करता नही है
जैसे तम मिटाता रवि है
वैसे सत्य बताता कवि है
कवि झूठ लिखता नही है
जो झूठ की करता पैरवी है
वो हो सकता नही कवि है
जो लिखे सच बाते सही है
वो होता वाकई में कवि है
जैसे तम मिटाता रवि है
वैसे सत्य बताता कवि है
वो व्यक्ति बनता कवि है
जो सत्य लेखन की छवि है
जैसे बिना ज्योति अग्नि है
वैसे बिना सत्य कवि है
दोनों होते व्यर्थ घड़ी है
जो न बताये वक्त सही है
जो सच लिखती लेखनी है
वो खुदा की करती बंदगी है
वो कभी झुकता नही है
जो सच वास्ते देता बलि है
वो ही होता सच्चा कवि है
जैसे तम मिटाता रवि है
वैसे सत्य बताता कवि है
मुरझाये फूलो को देता है,
वो नवसृजन की कली है
जो अंधविश्वास मिटाये
समाज को रस्ता दिखाये
ऐसा होता सच्चा कवि है
सत्य ही होती जिंदगी है
तीनो काल गढ़ता कवि है
उसके भीतर होती घड़ी है
जैसे तम मिटाता रवि है
वैसे सत्य बताता कवि है
दिल से विजय