कवि भाषा कविता परिवार
कवि भाषा कविता परिवार
सोचो गर हो कवि कविता भाषा का एक सुंदर परिवार,
कवि पति भाषा पत्नी पुत्री कविता जिसके स्वप्न हजार।
प्रकृति से चुन भावों के रंग, बनकर कवि स्वयं चित्रकार,
अपनी कल्पनाओं से करता, भाषा का सुरूप साकार।
कभी बनकर एक स्वर्णकार, चुन शब्दों के सुंदर मोती,
करता भाषा को अर्पित, भावमयी अभिव्यक्ति की ज्योति।
चंद्र चांदनी की कोमलता से, करता भाषा का सिंगार,
होता सम्मोहित निज भाषा पे, कवि है ऐसा मनिहार।
कभी बनकर खांडिक भी, संजोता भाषा में मिठास,
करता संतृप्त जीवन की, अतृप्त साहित्यिक प्यास।
इन्द्रजालिक ये जिसका, नील गगन सा विस्तृत आकाश।
निरन्तर रचनाओं से करता, भाषा का अप्रतिम विकास।
शिल्पकार की भूमिका में, तब सरिता से लाकर प्रवाह।
सृज कर एक स्वप्निल संसार, करता निज जीवन निर्वाह।
कवि कविता भाषा का, अद्भुत मनोहर है यह संसार,
जहां जनकर कविता, कवि भाषा को देता है उपहार।