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Sudhir Srivastava

Tragedy

4  

Sudhir Srivastava

Tragedy

कुर्सी

कुर्सी

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राजनीति के खेल में आज

कुर्सी भी अपना महत्व खो रही है,

बेशर्मी का खेल देखते हुए

कुर्सी भी बड़ी बेशर्म हो गई है।

कुर्सी की अहमियत लगातार घट रही है,

कुर्सी अब धोबी घाट सी हो गई है।

कुर्सी की अहमियत पद से नहीं

झूठ, बेईमानी, भ्रष्टाचार की पहचान बन गई है

कुर्सी पर बैठने वाला भी 

अब कुर्सी का मान भला कहां रखता है?

महज अपवाद भर कुर्सी का सम्मान बचा है।

कुर्सी न हुई खिलौना हो गई है,

जो जबरन छीन पा रहा

कुर्सी उसी के हाथ आ रही है।

शासन प्रशासन में भी 

कुर्सी का महत्व अब कहां रहा?

भ्रष्टाचार, बेइमानी का दीमक 

आज कुर्सी को खा रहा है

कुर्सी वाला ही जब कुर्सी को 

भाव नहीं दे रहा है,

तब कुर्सी भला क्या करेगी?

अपनी दुर्दशा पर रोने के साथ

भला और क्या कर सकेगी?

बीते अच्छे दिन याद कर संतोष करेगी

और अपनी आज की हालत में

आह भरती हुई अपनी यात्रा जारी रखेगी।

इसके सिवा और कुछ कर न सकेगी। 



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