कुद़रत
कुद़रत
कुदरत की मेहरबानियां क्यूं समझ नहीं आती
खुशियां नवाजी जाती है पर मुझे रास ही नहीं आती
जो साथ वो समझा नहीं
जो समझा वो साथ नहीं
वक्त भी बड़ा ज़ालिम होता है ,
क्योंकि जब वो साथ था तो पता नहीं वो कहां था?
आज वो मिल गया तो वक्त नहीं है
ज़िन्दगी ऐसे ही कशमकश में गुजर जाएगी
क्या करें तलाश पूरी हुई पर मुलाक़ात फिर अधूरी रह जाएगी।