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ज्योति शर्मा

Abstract

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ज्योति शर्मा

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बौंछारें

बौंछारें

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वक़्त एक ऐसा खेल है जिसे चाहो ना चाहो खेलना ही पड़ता है

किसी के हिस्से शय तो किसी के हिस्से मात आती है ।

दोस्तों बस डरना नहीं क्योंकि इस खेल में बस ज़िंदादिली ही काम आती है।

जो डर गया वो मर गया।

आशिकी हो या मोहब्बत सब बचपना है यारो, बस यारियां ही काम आती है 

दोस्तों की खिलखिलाती हंसी हो या उनकी चुलबुली अदाएं सब दिल को खुश कर जाती ,

यही वही जगह होती है जहां अपनी भी अधूरी आशाएं पूरी हो जाती । 

खुल जाएं सभी अहसास ए दोस्ती के साथ कुछ गाए कुछ गवाएं गुदगुदाते हुए सब आज,

अमीरी गरीबी वफाओं और बेवफाई का छोड़ते हुए अहसास । 

नींद की जंग आंखो से कुछ और ना समझ ए दोस्त ये कुछ और नहीं कोरोना के इफेक्ट्स है।

सारा देश इससे गुजर रहा है और रात में उल्लुओं की तरह जाग रहा है ।

कहानी लाजबाव हो या ना हो अब ना कोई दूसरी शुरू कर 

वक़्त सबके पास बहुत कम है ,

चैन से सोए चैन से जागें अब इस उमर का बस यही धरम है ।

भरम में रहना अब उचित नहीं है दोस्त ,

कोविड से कैसे ही बच जाएं अब

अब तो बस यही ईश्वर का करम है ।

जो देखता ही नहीं तेरे आंसू दरकिनार कर ऐसे शख़्स को ज़िन्दगी से,

खुल कर देख ज़िन्दगी में रहमगार और भी बहुत हैं ।

जो देखता ही नहीं तेरे आंसू दरकिनार कर ऐसे शख़्स को ज़िन्दगी से,

खुल कर देख ज़िन्दगी में रहमगार और भी बहुत हैं ।

दिल दुखाकर रोते हुए छोड़ देना यूं ही किसी की फितरत नहीं होती, 

वक़्त ने शायद उसे भी कुछ ऐसा ही जख्म तो नहीं दिया!



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