कुदरत
कुदरत
स्वर्ग जैसी धरती दी थी जीने के लिए
पर मनुष्य के स्वार्थ ने शातिर रास्ते ढूँढ लिए
अपनी असीमित लालसाओं को इस कदर बढाता गया
लोभ, बेईमानी का जाल फैलाता गया
जंगल के जंगल तबाह कर दिये
प्राणियों के घर भी उजाड़ दिए
हवा को इतना जहरीला बना दिया
खुद तो क्या धरती को भी सांस लेने के काबिल न रखा
कितनी बार सावधान करना चाहा कुदरत ने इशारों में
लेकिन मनुष्य मग्न रहा अपनी ही धुन में
आज नतीजा सामने आया कुरदत ने स्वयं अपने को बचाया।
मनुष्य बैठा है घरों में कैद
कुदरत और प्राणी कर रहे कैसे ऐश।
