कुदरत है बरदान
कुदरत है बरदान
कुदरत के कानून को, तोडो मत इंसान।
तुम दोगे तो ही मिले, जीवन का सम्मान।।
ये धरती तेरी नहीं, बस कब्ज़ा कुछ रोज।
क्यूँ खोया है ख्वाब में, रख ले कुछ तो होश।।
पेड़ बूटे काटकर, पोसे स्वार्थ महान।
ये बायु व्यर्थ नही, बेअर्थ बिन वायु, प्राण।।
जंगल, धरती, ये नदी देते जीवन दान।
क्यूँ उजाड़ कर भूमि का करता है अपमान।।
दुनिया मे सर्वोपरि, मतकर ये अभिमान।
कुदरत ही शरुआत है, कुदरत ही अंजाम।।
धरती माँ ने पाल कर कर दिया पूरा फ़र्ज़।
दूध नहीं तो गोद का कुछ उतार ले कर्ज।।
'शर्मा' माने माँ इसे, कुदरत है वरदान।
अपनाए तब भी हमें, छोड़ जाये जब प्राण।।