कुछ तो
कुछ तो
मील का पत्थर चाहे ना बन पाएं,
रास्ते में इक निशाँ तो अपना भी हो।
पूरा कर पाएं, ना कर पाएं,
हो छोटा सा, पर इक सपना भी हो।
मंज़िलों पे नाम खुदा किसी और का सही,
सफ़र में साथ औ' हाथ अपना भी हो कहीं।
कदमों के बढ़ने पे तालियाँ ना बजें,
खामोशी है अपनी हौसलों संग बही।
कोई सड़क हमारे नाम पे ना हो चाहे,
हम वहां चलें जहां डर से थे लोग ठिठके।
ये वक्त भले ही किसी और का कहलाए,
हम चट्टानों से लड़ें, मुट्ठियां ना झिझके।
न हो सूरज हमारे हाथ में,
दिया जलाने को एक बाती हमारी हो।
सीधे सफर में जीवन ना कटे चाहे,
किसी मोड़ पे हमारा मन ना भारी हो।
जो बन ना सके कहानी किसी किताब की,
लेकिन इक वाक्य तो अपना छोड़ कर जाएं।
दुनिया डरती है जिस मौत से,
देख के उसको हम ज़रा सा मुस्कुराएं।
