कुछ कहना चाहता हूँ
कुछ कहना चाहता हूँ
कुछ कहना चाहता हूं पर कहा नहीं जाता
चुप रहना चाहता हूं चुप रहा नहीं जाता।
तुम हंस भी लेते हो छुपके रो भी लेते हो
मैं हंस भी नहीं सकता छुपके रो भी नहीं पाता।
शर जिस्म को लग जाए तो सहना आसां है
शर दिल को लग जाए वो सहा नहीं जाता।
ये स्वाद है अदरक का मरकट क्या जाने है
बंदर क्या समझा है कुछ समझ नहीं आता।
ये जो हवा के झोंके है अपना जोर लगाऐंगे
दीया जलता रहना है इनसे बुझा नहीं पाता।
तुम्हें नींद आ जाती है तुम सो जो लेते हो
मुझको नींद नहीं आती मैं सो नहीं पाता।
--एस.दयाल.सिंह--