STORYMIRROR

S.Dayal Singh

Abstract

3  

S.Dayal Singh

Abstract

कुछ कहना चाहता हूँ

कुछ कहना चाहता हूँ

1 min
303

कुछ कहना चाहता हूं पर कहा नहीं जाता

चुप रहना चाहता हूं चुप रहा नहीं जाता।


तुम हंस भी लेते हो छुपके रो भी लेते हो

मैं हंस भी नहीं सकता छुपके रो भी नहीं पाता।


शर जिस्म को लग जाए तो सहना आसां है 

शर दिल को लग जाए वो सहा नहीं जाता।


ये स्वाद है अदरक का मरकट क्या जाने है

बंदर क्या समझा है कुछ समझ नहीं आता।


ये जो हवा के झोंके है अपना जोर लगाऐंगे

दीया जलता रहना है इनसे बुझा नहीं पाता।


तुम्हें नींद आ जाती है तुम सो जो लेते हो

मुझको नींद नहीं आती मैं सो नहीं पाता।

--एस.दयाल.सिंह-- 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract