कुछ पता नहीं
कुछ पता नहीं
ईश्वर की अनमोल अमानत है जिंदगी
अढ़ाई दिन की बादशाहत है जिंदगी
हर पल जी भर के जिया जाए
न जाने कब लौटानी पड़ जाए
कुछ पता नहीं
मत हो उदास देख दूसरों की खुशी
समय लाता सबके हिस्से की खुशी
कब, कहां, कितनी मिलेगी ?
कुछ पता नहीं
तन्हाई से डरकर वो खुद के साथ बैठ जाती है
अपने कुछ और करीब आ जाती है
कब हो जाए मन का मौन मुखर
कुछ पता नहीं
वक्त अप्रत्याशित है बदलता रहता है
सदा अजमाइश करता रहता है
कब अनुकूल कब प्रतिकूल
कुछ पता नहीं
वो उसका दोस्त है कभी दगा न देगा
मुसीबत में हाथ थाम लेगा
ये सच है या है उसका भरम
कुछ पता नहीं
दौड़ रहें हैं भीड़ में सब होकर बेखबर
धकिया रहे हैं एक दूजे को इस कदर
कहां जाता है रास्ता मगर
कुछ पता नहीं
स्कूल जाने की उम्र में बच्चा गुब्बारे बेचता हैै
पेट की खातिर अपना बचपन बेचता है
ये वर्तमान है क्या होगा भविष्य
कुछ पता नहीं।
वो रोज कुआ खोदता है रोज पानी पीता है
रात को थकाहारा बेफिक्र सोता है
क्या होता है चोरी का डर उसे
कुछ पता नहीं
मुरझा गये फूल रो रहा चमन जार जार
हुआ फिर किसी कली का बलात्कार
क्यों मानव बन गया है दानव
कुछ पता नहीं
कोरोना ने फिर से पसार लिए अपने पांव
मजदूर फिर लौटने लगे अपने गांव
कब खत्म होगा ये कहर
कुछ पता नहीं।
