कुछ लम्हे जीना चाहता दोबारा
कुछ लम्हे जीना चाहता दोबारा
सोचूँ कि जब मैं छोटा था
सोता रहता माँ की गोद में
जगूँ तो हँसता देखूँ माँ को
जीना चाहता वो लम्हे फिर से।
कुछ लम्हे जो मेरे अतीत में
सोचूँ मैं कि जी लूँ दोबारा
प्रार्थना करता मैं प्रभु से
सच कर दो ये सपना मेरा।
छोटे बच्चों संग गली में
कंचे फिर से खेलना चाहूँ
लड़ाई झगड़ा कर लूँ फिर भी
अगले दिन फिर वहीं आ जाऊँ।
पापा की उँगली पकड़ कर
फिर मैं जाना चाहूँ स्कूल में
छुट्टी की घंटी बजे तो
चाहूँ खेलना मिट्टी धूल में।
स्कूल से वापिस आकर फिर
खाना खाऊँ माँ के हाथ से
छत पर मैं हूँ सोना चाहता
तारे गिनना चाहता रात में।
आना चाहता प्रथम क्लास में
ताकि माँ की ख़ुशी देख सकूँ
साथ में जाकर पापा के
दो दो आइसक्रीम ले सकूँ।
बहन, भाई और दोस्तों के संग
ताश खेलना चाहता हूँ मैं
चीटिंग करूँ तो ग़ुस्से वाले उनके
भाव देखना चाहता हूँ मैं।
कॉलेज में फिर से जाना चाहता
वो दिन तो कभी भूल ना पाता
उन दिनों का सपना भी आए तो
कुछ पल का सुकून दे जाता।
चाहता कि दोस्तों के संग
महफ़िलें जमाऊँ रातों में
भीगूँ और नाचूँ गाऊँ मैं
सावन की उन बरसातों में।
पैदल पैदल लौटकर आऊँ
नाइट शो मूवी का देखकर
गाना एक गुनगुनाता हुआ
उनके साथ सूनी सड़कों पर।
पढ़ाई पूरी कर अलविदा कहूँ
गले मिलकर, आँखें भरकर मैं
वो कहें ‘अबे, दुखी क्यों होते
फिर मिलेंगे, ज़्यादा दूर नहीं हैं ‘।
शादी की वेदी पर बीवी संग
फेरे लेना चाहूँ मैं फिर से
देखना चाहता हूँ फिर से कि
कैसी लगती दुल्हन के वेश में।
अपने बच्चों को गोद में लेकर
चाहूँ खेलना साथ में उनके
कंधे पर बैठाकर उनको
सुनना चाहूँ ठहाके हसीं के।
प्रथम आएँ बच्चे क्लास में
खुश होऊँ तब मैं कुछ ऐसे
मेरे माता पिता खुश हुए थे
मेरे प्रथम आने पर जैसे।
जानता हूँ कि गया हुआ समय
लौट के कभी आता नहीं
फिर भी एक इच्छा है मन में
कुछ लम्हे जी लूँ फिर वही।