कुछ करो ना !
कुछ करो ना !
कश्ती है भंवर में या कश्ती में भंवर है
प्रहरी की हर एक श्वास पे दुश्मन की नजर है
चित्कारते कंठों की राहत की तलाश में
जो ओस की बूँदें जुटाई हैं उनमें भी जहर है
सरकते हुए पानी में तस्वीर नहीं बनती
साँसों को रोक कर देखो, इक अक्स उधर है
उबलते हुए अरमानों को बर्फ से ढाँक दो
तूफान ही बनेंगे, ये हालात अगर है
माना की खाल सख़्त है, अब तक ना भेद पाए
कोई तो हिस्सा होगा, जिसमें की कसर है
रुख हवाओं का मोड़ने की ज़िद क्यों करें
हो के हवाओं पे सवार अब अपना सफ़र है
तूफ़ान के वेग को पालों में भर के बढ़ चलो
सट के नहीं बल्कि डट के रहने में असर है