कुछ ढंग का लिख ना पाओगे
कुछ ढंग का लिख ना पाओगे
जब तक तुमने खोया कुछ ना दर्द समझ ना पाओगे
चाहे कलम चला लो जितना कुछ ढंग का लिख ना पाओगे
जो तुम्हारा हृदय ना जाने कुछ खोने का दर्द है क्या
पाने का सुकून क्या है ना पाने का डर है क्या
कैसे पिरोओगे शब्दों में तुम उन भावों को और आहों को
जो तुमने ना महसूस किया हो जीवन की असीम व्यथाओं को
जब तक अश्क को चखा ना तुमने स्वाद भला क्या जानोगे
सुख और दुःख में फर्क है कैसा कैसे तुम पहचानोगे
कैसे लिखोगे श्रृंगार का रस तुम जो प्रेम ना दिल में बसता हो
प्रीत के गीत लिखोगे कैसे जब सौन्दर्य तुम्हें ना जंचता हो
क्या लिखोगे यारी पर जो मित्र ना पीछे छूटा हो
उम्र भर संग रहने का कोई वादा ना तुमसे टूटा हो
वर्णन भूख का करोगे कैसे पेट सदा जो
भरा रहा
सिहरन को लिखोगे कैसे चोला जो तन पर सदा रहा
जब तक तुमने फसल ना बोई मौसम की झेली मार नहीं
किसान भला तुम लिखोगे कैसे जब तक हुए लाचार नहीं
विरह भला तुम क्या जानोगे मिलन सुख ना पहचानोगे
परदेस नहीं तुम जाओगे तो मिट्टी लिख ना पाओगे
पिता पुत्र का स्नेह है कैसा?, क्या माँ का है नाता बच्चों से
कैसे इनका वर्णन होगा जो ना बिछड़ो तुम अपनों से
उत्थान भला तुम क्या समझोगे पतन अगर ना देखी हो
जीत भला तुम लिखोगे कैसे जो हिस्से में हार ना आई हो
बस एहसास का खेल है सारा जो शब्दों में दिखाता है
निकल कर तेरे अंत: मन से पाती पर जाकर छपता है।