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AMAN SINHA

Abstract Inspirational

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AMAN SINHA

Abstract Inspirational

कुछ ढंग का लिख ना पाओगे

कुछ ढंग का लिख ना पाओगे

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441


जब तक तुमने खोया कुछ ना दर्द समझ ना पाओगे

चाहे कलम चला लो जितना कुछ ढंग का लिख ना पाओगे


जो तुम्हारा हृदय ना जाने कुछ खोने का दर्द है क्या

पाने का सुकून क्या है ना पाने का डर है क्या

      

कैसे पिरोओगे शब्दों में तुम उन भावों को और आहों को

जो तुमने ना महसूस किया हो जीवन की असीम व्यथाओं को


जब तक अश्क को चखा ना तुमने स्वाद भला क्या जानोगे

सुख और दुःख में फर्क है कैसा कैसे तुम पहचानोगे

      

कैसे लिखोगे श्रृंगार का रस तुम जो प्रेम ना दिल में बसता हो

प्रीत के गीत लिखोगे कैसे जब सौन्दर्य तुम्हें ना जंचता हो


क्या लिखोगे यारी पर जो मित्र ना पीछे छूटा हो

उम्र भर संग रहने का कोई वादा ना तुमसे टूटा हो


वर्णन भूख का करोगे कैसे पेट सदा जो भरा रहा

सिहरन को लिखोगे कैसे चोला जो तन पर सदा रहा


जब तक तुमने फसल ना बोई मौसम की झेली मार नहीं

किसान भला तुम लिखोगे कैसे जब तक हुए लाचार नहीं

                  

विरह भला तुम क्या जानोगे मिलन सुख ना पहचानोगे

परदेस नहीं तुम जाओगे तो मिट्टी लिख ना पाओगे


पिता पुत्र का स्नेह है कैसा?, क्या माँ का है नाता बच्चों से

कैसे इनका वर्णन होगा जो ना बिछड़ो तुम अपनों से


उत्थान भला तुम क्या समझोगे पतन अगर ना देखी हो

जीत भला तुम लिखोगे कैसे जो हिस्से में हार ना आई हो


बस एहसास का खेल है सारा जो शब्दों में दिखाता है

निकल कर तेरे अंत: मन से पाती पर जाकर छपता है



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