कुछ बातें
कुछ बातें
जो हम कहना चाहे और वो बस रह जाए दिल में ही
सच कहो तो वो बस कचोटती ही रहती है।
और बस एक हंसी का आवरण होता है खुद के ऊपर
सच इतना बेगैरत सा क्यूं होता है
जिसे बोलने से ही हम डर जाते हैं
डर सच बोलने का नहीं होता
डर उस इंसान के दूर हो जाने का होता है
जब एक झूठ से रिश्ता बच जाता है
तो हम बस रिश्ते की ही सोच जाते हैं
और एक एक कर सच छूटता जाता है
झूठ की दीवार खड़ी होती जाती है
बस एक डर से खुद को बचाने को
हम सब कुछ छोड़ जाते है
और घुट जाते हैं अंदर है अंदर
क्या रिश्ते को बचाने के लिए
खुद की तिलांजलि देनी होती है
या खुद को ही खत्म करना होता है।