वक़्त
वक़्त
1 min
225
कब बीत जाता है वक्त
सब संभलते हुए भी बिखर जाता है वक्त
कुछ सपनों का हौसला हमें भी तो दो
बेशक टूट जाएं हम अपनी ही गलतियों से
पर कुछ मुस्कराने का मेरा हिस्सा मुझे भी तो दो
लौट कर ना आएंगे फिर कभी यूं दर पर तेरे
मेरे बेबसीपन को संवारने का एक माहौल तो दो
चल पड़े हैं कुछ किस्से मेरे भी इस शहर में
गुमनाम होने से पहले कुछ नाम होने तो दो
वक्त सुना है तेरे दामन में गजब का सुकून है
बस कुछ पल मुझे मुझसे मिलने तो दो
जम चुकी है कई जमाने से अपनों की बातें
,उस नफरत की बर्फ को थोड़ा पिघलने तो दो
वक्त तुझसे बड़ा कोई ना मिला मुझे इस दुनिया में
थोड़ी दुनियादारी मुझे भी कुछ सीखने तो दो