ख्वाहिश
ख्वाहिश
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उन ख्वाहिशों का भी एक सिलसिला था
वक्त के साथ, कदम दर कदम
हर पल साथ निभाने को, हर यादों को संजोने को
हर अपनों से मैं बस अपनों की तरह मिला था
मेरी ख्वाहिशें, शायद तुम्हें अब मुझ पर यकीन ना हो
एक वक्त शायद सब कुछ मेरा तुझ पर ही ठहरा था
बीत रहा सब कुछ जैसे पहले की ही तरह
मेरी दुनिया बेखबर सबसे,
बांध लिया हो एक समंदर खुद में ही
मुझ पर जैसे वक्त का पहरा था
कैसे भूला दूं, अपनी हर छोटी-बड़ी ख्वाहिशें
और क्यूं भूलूं, वक्त की थी हुई हर निशानियां
उन सबसे ही तो जीने का हुनर पाया था...