कुछ अजीब रिश्ते
कुछ अजीब रिश्ते


आज रोने को जी चाहा बहुत,
तुम्हें तो पता ही है
मैं दबा लेती हूँ ,
अपने भीतर उठा हर एहसास।
मैं घुटती रही अंदर ही अंदर,
चुपचाप सुनती रही
अचानक एक टीस उठी,
तुम्हे खो देने का वो डर।
मैने फिर मन को समझाया ,
अरे ये सब तो होना ही था ,
मैं फिर करने लगी तुमसे सवाल - ज़वाब ,
तुम हँस के पढ़ते रहे वो नई किताब।
अचानक से बिजली कड़की ,
घनघोर अंधेरा चारों ओर हुआ ,
नम थी पलकें .....
हो रही थी बारिश बहुत तेज।
" हम बाद में बात करते हैं " ,
कँपकपाते हाथों ने टाइप किया ,
"सच्चा प्रेम" एक छलावा नहीं होता ,
ये एहसास है कुछ अजीब रिश्तों का। .