कुछ ऐसी हवा
कुछ ऐसी हवा
आजकल कुछ ऐसी हवा चल रही है
हर किसी की बिना बात जल रही है
कोई कुछ सफलता क्या पा लेता है,
उसे रिश्ते की हर परछाई छल रही है
लोगो की बोली के मिठास के आगे,
बेचारे गुड़ की मिठास,बदल रही है
आजकल कुछ ऐसी हवा चल रही है
नदी की धारा,दिशाएं बदल रही है
जिन्हें अक्सर आदमी अपना मानता,
उनके द्वारा पीछे बुराइयां चल रही है
आज दरख़्तों के नीचे धूप लग रही है
खुले आसमाँ से जिंदगी चल रही है
काजू,बादाम से कहीं ज्यादा,साखी,
जग की ठोकरों से अक्ल मिल रही है
आजकल कुछ ऐसी हवा चल रही है
सत्य से ज्यादा,झूठ की चल रही है
तू निराश न हो,हताश न हो,साखी,
एक रवि से निशा,भोर में बदल रही है.