कठपुतली
कठपुतली
सोचते है हम अपने दिमाग से,
मगर चलते हैं उसके मिज़ाज से।
हमें लगे कि हम हैं स्वयंसिद्ध,
पर सफल करने वाला वो है सर्वेसर्वा।
बाँट दिया है जिसने किरदार,
थाम के हमारी डोर बन बैठा वो सरकार।
कठपुतलियों सा हमें नाच नचाए,
जीवन सूत्र उसी के हाथ से आए।
समय सबका तय करता वो ईश्वर कहलाए,
इशारों पर अपने सबको घुमाए।
पर कोई भी उसे देख न पाए ,
ये जग सर्वशक्तिमान की कठपुतली कहलाए।
