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Devkaran Gandas

Abstract

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Devkaran Gandas

Abstract

कसक

कसक

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तेरे दिल के इन जख्मों को,

ना कोई यहां पहचान सका।

इस छोटे से दिल के भीतर,

कितने दुख है ना जान सका।।


मैं दावा नहीं यह करता कि,

मैंने तुम को था पहचान लिया।

तेरे दिल के कुछ भावों को,

लगता है मैंने जान लिया।।


जब पढ़ा तुम्हें तो ये जाना,

तुम शेष बची हो बहुत अभी।

मेरे दिल की जिज्ञासाओं का

उत्तर भी मिलेगा कभी ना कभी।।


अब कसक रही है यही बची ,

क्यों तुमको मैं भी ना जान सका।

तेरे दिल के इन जख्मों को ,

क्यों मैं भी ना पहचान सका ।।



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