कश्ती
कश्ती


उम्मीदों की कश्ती में,
निरन्तर बहते जाना है।
लहरों से टकराकर ही,
मंज़िल हमें पाना है।।
मौसम के रुख़ से हमें,
कभी नहीं घबराना है।
कभी शिखा, कभी शिकस्त,
दोनों में ही मुस्कुराना है।।
चाँद जब चंचल होता है,
लहरें भी इठलाती है।
हमारी कश्ती भी ऐसे में,
ख़ूब हिचकोलें खाती है।।
संयम और सबर का,
इम्तिहान हमें तब देना है।
कुछ वक़्त बस तब हमको,
बीत जाने देना है।।