करुणा भाव,
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जिसके करुणा भाव नहीं हो, वो पशु से बदतर होये।
सारा जीवन दुखमय बीते, अपमानित होकर रोये।।
रोने से कुछ भी ना होये, दर दर में ठोकर खाये।
अच्छे बुरे आदि कर्मों का, ज्ञान होय न जान पाये।।
नर नारी का तन पाकर कुछ, घट कर्मों के बीज बोये। जिसके1
जो पल बीते कभी न लौटे, कर्म करें क्यों मनमाने।
महा बली होता है जाने, रुचे पथ पंथों को ठाने।।
जिससे पतन यहीं पर होये, अकेले डरे पड़े रोयें। जिसके 2
करुणा भाव भरे हों जिनके, सत करे सत कहे वे जग में।
दया धर्म मानवता उपजे, सफल होय मंजिल जग में।।
उनका जीवन
होय सार्थक, भ्रम दुविधा संग संग खोयें। जिसके3
जाने माने और जनाये, तभी होय जग में कल्याण।
ना खाली जाने से कुछ हो, अमल करें हो ज्ञान प्रमाण।।
सदियों से होता है आया, कर्म फलों से गाये रोये। जिसके 4
अनुष्ठान करें ग्रंथ पढ़े कोई, काम नहीं देवें कोई।
करुणा भाव नहीं हो जिनके, शनै शनै सब कुछ खोई।।
छीड़ हीन तन के होने से, व्याधि सहन ना हो रोये। जिसके 5
जिसने जन्म लिया है जग में, मिल जुल करके रह लेवें।
अंधविश्वास कुरीति त्यागे, करुणा भाव प्रेम गह लेवें।।
अविनाशी खुद कर्म फलों से, यहीं पे स्वर्ग नर्क होते। जिसके 6