कृपा की भीख।
कृपा की भीख।
मेरे गुरुदेव !तुम्हें पाके अब कोई और तमन्ना बाकी नहीं है।
तुम्हें अपने हृदय में बसा के ,मेरा कोई और ठिकाना नहीं है ।।
प्यार दिया तुमने इतना ,कि किसी और से उम्मीद ना थी।
वश में किया ऐसे मुझ को, दिल से निकालने की तबीयत ना थी।।
तुम रखते हो ख्याल सभी का, इतने बड़े कृपालु तुम हो।
मांगा जिसने जो भी तुमसे ,तुम दाता अपरम्पार हो।।
दूसरों के बारे में क्या कहूँ, जब अपने को ही मैं देखता हूँ।
कितने उपकार किए मुझ पर ,प्रतिपल यही सोचता मैं हूँ ।।
जो माँगना था वह माँग ना सका, तुम सर्वस्व अपना लुटाते रहे।
वह दौलत कुछ निराली है ,विरले ही उसको पाते रहे।।
मुझ में ना इतनी शक्ति थी ,उस अमृत बिंदु को पीने की ।
तुमको तो वसीयत मिली थी ,सिर्फ इसे लुटाने की ।।
मलिन भरा हृदय पुकार रहा है ,तुमसे अमृत बिंदु पाने को।
" कृपा की एक भीख "दे दो," नीरज" खड़ा है सर्वस्व लुटाने को।।