कर्म का चिट्ठा
कर्म का चिट्ठा
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सच मानो कोई देख रहा है, जिसका तुमको भान नहीं।
लिख रहा है हर "कर्म का चिट्ठा" जिसको तुमको अनुमान नहीं।।
हर करनी का फल है बनता, वह तुम पर ही निर्भर करता है।
अच्छी करनी सुख है देती, बुरे कर्मों से कष्टमय जीवन बनता है।।
जल रहा संसार दु:खों की ज्वाला में, है ज्ञान की अग्नि का दुष्परिणाम।
विज्ञान ही बना अज्ञान का कारण, जिसने किया सब का जीना हराम।।
धर्म ग्रंथों के सिद्धांत को ना समझते, जो शांति की एक स्थिति है।
इससे ही जीवन सुखद बनेगा, जिसकी दुनिया को जरूरत है।।
यही ज्ञान व्यवहार है सिखलाता, परमानन्द का सूचक है।
आत्म-देश के सब हैं प्राणी, परमात्मा ही इसके रक्षक है।।
श्रद्धा- विश्वास को पक्का कर ले, उस तक पहुँचने में सहायक है।
भय-मुक्त तेरा जीवन होगा, कर्म-बंधन हर्ता विनायक हैं।।
सेवा करने से जो लाभ है होता ,वह परमात्मा ही की सेवा है।
वह तो सबके हृदय की खबर है रखता, साक्षात महादेवा हैं।।
धर्म- कर्म से जो जीवन यापन हैं करते, बनते न उनके संस्कार हैं।
वो ही पहुँचते उसके दर पर, जो जीवन का पूरा सार है।।
भय-भरोसा जिनको है होता, सुखद बनता उसका संसार है।
" नीरज" तो ठहरा दुखिया जग में, पाप कर्मों से भरा भंडार है।।