कर्म-आग
कर्म-आग
पौष के जाड़ो की यह, बेहद सर्द रात
ओर हृदय मे उठ रहे है, कई जज्बात
बाहर से यह मौसम बहुत ही ठंडा है
पर भीतर विचारों की जल रही, आग
एक मन कहता तू सो, जा बड़ी सर्दी है
दूसरा मन कहता है, तू कर्म कर तात
भीतर का जलता हुआ, तेरा यह चराग
भीतर का मिटा रहा, आलस्य अंधकार
वक्त फिर न लौटेगा, तू हिम्मत न हार
अभी कर्म से, अपने स्वप्न कर साकार
पौष के जाड़ो की यह बेहद सर्द रात
कर्म कर कर्मवीर, कह रही, लगातार
लक्ष्य को गर तुझे पाना है, मेहनत कर
आलस्य के इस दुश्मन को दे, तू मात
कर्म सीख ले हिंद सैनिकों से आज
जमाव बिंदु पर, कर्म करते, लाजवाब
एक हम है, रजाई ओठकर भी रोते है
ओर कहते, पौष की बेहद सर्द है, रात
कर्मवीरों के लिए, सर्दी जलाती, अलाव
उनके दिल से निकलती है, कर्म-आग।