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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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कोशिश

कोशिश

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तुम कुछ कह रहे थे

और कुछ कहना चाह रहे थे

मैं तुम्हारे कहते हुये

वो कह दिया जो तुम

कहना चाहते थे।

तुमने सुना नहीं मुझे

या अनभिज्ञ हो अपनी चाहत से

तुम्हारे कहने

और मेरे कहने के बीच

मौन सा पड़ा हुआ है

मेरा कहना

और तुम मुझे भी

और मेरे कहने को भी

अजनबी की तरह देख रहे हो।

चलो तय हुआ

तुम अपनी तरह

अपनी चाहत से भी अजनबी हो।


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