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Ram Chandar Azad

Abstract

4  

Ram Chandar Azad

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कोरोनाराज

कोरोनाराज

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रोज रोज सुनि सुनि मन अकुलाई गैले

राम जाने आगे अरु काव काव होना है


केहि बिधि पंहुंचब अपने मुलुक अब

इहाँ उहाँ सबहि कोरोना ही को रोना है


कहत आज़ाद खाएं पियें अरु कैसे जियें

हम मज़दूरनन के भाग मे ही रोना है


मोटरगाड़ी बंद भयो ट्रेनों ठपाठप हयो

कामकाज बंद अब कहाँ जाई का करी


जेब में न फूटी कौड़ि पेट रह्यो चूहे दौड़ि

अपनी पहुँच नाहीं केहि से जुगाड़ करी


कहत आज़ाद चित लाग्यो अब घर मेरो

दिल व दिमाग में कोरोना ने बसेरो करी


चर्च, गिरजा,मठ अरु मस्ज़िद अनाथ भई

कर्म -कांड, पूजा -पाठ सब पे विराम है


बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी है

अब तो ही निज गृह जैसे चारों धाम है


कहत आज़ाद भय हिय में समायो है औ

सबकी ज़ुबान पर कोरोना ही को नाम है।


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