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Kalam Ki Takat

Tragedy

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Kalam Ki Takat

Tragedy

कोरोनाकाल

कोरोनाकाल

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जो आवाजों से गूंजा था रहता,

उस शहर की रौनक गुम हो गई..

ये बाज़ार भी अब मौन ही रहता,

हर ओर अब शांति छा गई।

जो मिले बिना रह न पाते थे,

अब दूर होते जा रहे है..

ये क्या वक्त लाया तू कोरोना,

मेरे यार भी मुझसे दूरी बना रहे है।

गले मिल कर दुख बांटे थे,

अब तो हाथ भी न मिला सके..

दूर से होता ही अब नमस्ते है,

मुख पर सबके मास्क छा चुके।

इस समय से गुजरते हुए, 

अब हमें चला पता..

अंधकार की चुप्पी से,

कई ज़्यादा भयावह होती है..

रोशनी की नीरवता।

शहर खुलेगा इस आस में,

सारे व्यवसाई बैठे है घर ..

क्योंकि ठप पड़े है व्यापार,

और मंदी ने तोड़ी है कमर।

ये क्या ज़माना आ गया,

जहां हवा पर भी कीमत लगी है..

अस्पताल में कम पड़े पलंग,

और मरीजों में जीवन जीने की

घटने लगी है उमंग।


प्रभु के द्वार जाने के लिए,

बड़ी संख्या में मुर्दे लेटे है..

खुदकी चिता को जलाने के लिए भी ,

लंबी कतार लगाए बैठे है।

अब ये पीड़ा नष्ट करने की,

विज्ञान की है बारी..

ए - जिंदगी थोड़ा रहम कर,

अभी तेरा साथ है ज़रा बाकी।

फसी हुई है दुनिया,

अपने ही पासों में..

एक वायरस टहल रहा,

मानवजाति की सांसों में।

               


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