पिता
पिता
छोटी - सी उंगली पकड़,
चलना जिन्होंने सिखाया..
जीवन के हर पहलू से,
हमें रू - ब - रू कराया।
वो बिन बोले ही समा जाते,
दुख के हर कोने में..
फिर सब शोहरत क्या ढूंढते हैं,
दुनिया के किसी सोने में।
वो अपने ख्यालों में भी,
रखते हमारा ख्याल..
वो है मज़बूत पेड़,
और हम उनकी डाल।
जीवन की कड़ी धूप में,
बरगद की घनी छांव - से है वो..
है हम सशक्त घर,तो हममें हर ईट-से है वो।
सुधारने हमारा बेहतर कल,
उन्होंने खुदका आज गंवाया..
ठोकर खाकर, दर्द सहना,
फिर आगे चलते जाना..
ठीक ऐसे हमें बढ़ना सिखाया।
जिसे सारा संसार है कहता,
सख्त दिखते, चुप ही रहते..
ज़रा भीतर झांक कर देखो,
मुझे तो इनमें भगवान है दिखते।
दुनियाभर की खुशियां देकर,
कभी उन्होंने न जतलया..
बच्चे की एक मुस्कुराहट के लिए,
अपना तन पसीने से जलाया..
दर्द दबाया, आंसू छिपाए,
तब जाकर वो ' पिता ' कहलाए।