कोरोना - बहाव, बचाव, बदलाव!
कोरोना - बहाव, बचाव, बदलाव!
कोरोना दिखा रहा, खतरनाक तेवर और अलग ही ताव।
बिना वार और तलवार के ही, दे रहा है गहरे-गहरे घाव।
रुकने का नाम नहीं, हर दिन पार कर रहा है नये पड़ाव।
सहम गई है दुनिया सारी, न जाने किस पर लगाए अगला दाँव।
गांव-शहर,देश-विदेश,पूरे विश्व की डोल रही है नाव।
छोटे-बड़े,अमीर-गरीब,किसी में नहीं कर रहा है भेदभाव।
सभी के रहन-सहन में,आ गया है बैठे-बैठे बदलाव।
सभी की भागती दौड़ती जिंदगी में,आ गया है चलते-चलते ठहराव।
सभी खा रहे दाल रोटी,छूट गया कढ़ाई-पनीर और भाजी पाव।
सभी की सभी ख्वाहिशें थम गई,बस रह गया है जीने का चाव।
कोरोना बन गया हैं सागर,उफा़न पर हैं जिसका बहाव।
बाहर निकले घर से तो,खुद के साथ डूबाओगे औरों की भी नाव।
बाहर ना निकले,ना करें कोई भी कहीं भी जमाव।
अपने-अपने घर में रहें,यही है सबसे बड़ा बचाव।
अपनी और अपनों की करें देखरेख,स्वच्छ रखें रखरखाव।
इतना करने से ही,कम हो जाएगा कोरोना का प्रभाव।
सच को फैलाकर अफवाहों को सिमटाकर, कम करें आसपास का तनाव।
एक दूजे की ताकत बनें,रखें संयम व सहायता वाला बर्ताव।
भविष्य की चिंता करके, न डालें खुद पर बेवजह दबाव।
जान है तो जहान हैं, ज़हन में डालें बस यही सुझाव।
समझाने की बात नहीं, समझदार हम खुद हैं,समझदारी से करें अपने लिए चुनाव।
मेल-जोल को बंद कर, मिल-जुल कर करें,अपनों के खातिर अपना अलगाव।