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Bhawna Kukreti

Abstract

4.8  

Bhawna Kukreti

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कोई एक

कोई एक

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मुझे एक दूसरे में 

सेंध लगाते रिश्ते 

सच अब बड़ी कोफ्त देते हैं।


कोई मित्र है तो मित्र ही रहे न ! 

वो प्रेमी क्यों होना चाहता है? 

जो दो में मेरे साथ पूरा है 

वो ढाई में अकेला 

अधूरा क्यों होना चाहता है।


कोई ये मानता क्यों नहीं,

मेरी मित्रता सदियों 

सागौन सी हर मौसम झेलती 

पकती रहती है,

लेकिन मेरे प्रेमी बनते मित्र को

उसका ही अधूरापन बहुत जल्द 

दीमक हो जाता है।


सच अब आस पास 

एक भी दीमक नहीं चाहती हूँ, 

उकता चुकी हूँ

इन जबरदस्ती की अधूरी 

बेगानी कहानियों की अभिशप्त 

नायिका होकर।


मेरी उपस्थिति के बगैर भी

अगर तुम मेरे कुछ हो सकते हो तो 

तो पहले सिर्फ

'ख़ुद' के प्रेमी हो जाओ,

बस...वो कोई 'एक'।


इतना काफी है 

मेरी अभिन्न मित्रता के लिए।


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