कमबख्त इश्क
कमबख्त इश्क
बस फिरते थे ,
मस्ती में बैगानो की तरह।
रुक से गए हैं अब ,
उन पैमानों की तरह।
इश्क जानने क्या लग गए ,
कमबख्त इश्क
जिंदगी में भटक रहे हैं ,
दीवानों की तरह
अहसास हुआ जब लगा,
दिल अब लाचार सा है।
तेरी तस्वीर इस तरह सजी,
मेरा दिल दीवार सा है।
हटाने का मन ही नहीं कर रहा है,
और आंख भी बन्द
करूं तो लगता है,
ये तस्वीर इश्क का बाजार सा है।
तेरे इश्क में हर पल तेरी याद में ,
हम इस तरह से खो गए ,
दिन बह गए पानी की तरह,
रातों में खुली आंखों से सो गए।
पता ही नहीं चला दर्द क्या होता है,
इश्क हम जो बेदर्द निकले
हंसते हंसते टाल गए हर वो पल ,
पता ही नहीं चला कब रो गए।
जब अहसास हुआ कि प्यार है तो
आगाज से अजांम तक
सफर कुछ युँ चला।
खुद को समझ कर मजनू
मैनें खुद को छला।
एक घाव था बस मोहब्बत का
कुरेदा बन गया जलजला।
हँस कर खुद पर,
मैंने खुद को बताया फलां।

