कलयुग केवल नाम अधारा।
कलयुग केवल नाम अधारा।
वह आत्मा शरीर से कुछ समय पहले ही निकली थी।
आजादी का सुकून तो मिला था उसे
लेकिन आकाश में भी वह अब बिल्कुल अकेली थी।
परमात्मा से मिलन को मच रही ही खलबली थी ।
आत्मा आकाश में छटपटाती थी
अकेली वह कहां रह पाती थी।
जैसे नदिया समुद्र से मिलने को तड़पती है,
ऐसे ही आत्मा को परमात्मा की याद आती थी।
आकाश में भ्रमण करते हुए उसे याद आए वह पल,
परमात्मा ने की थी कृपा उस पर
जब शरीर देकर भेज दिया था उसे धरती पर।
बस शुभ कर्मों की दरकार थी उससे।
पंच विकारों में ना फंसने की
परमात्मा ने की गुहार की थी उससे।
परंतु माया ने ऐसा चक्कर घुमाया।
इन सब बातों का तो उसे स्मरण भी ना आया।
अब आत्मा जहां से चली थी वहीं पर थी आयी।
घूमते घूमते अकेले ही वह फिर से अकुलायी।
परमात्मा के पाने का एक वही तो ठिकाना था।
मानव रूप में और कुछ नहीं सिर्फ शुभ कर्मों में हीं तो मन लगाना था।
मगर यह हो ना पाया।
शरीर से आत्मा के निकलते ही उसके साथ भारी मन भी तो चला आया।
अब इच्छाएं बलवती हो रही थी।
आत्मा ज़ार ज़ार रो रही थी।
परमात्मा कर दो कृपा अबकी बार।
तुम्हारा होगा बहुत बड़ा उपकार।
अबकी सिर्फ तुम्हारा नाम लूंगा मैं।
माया मोह के पाश में नहीं बंधूंगा।
मुस्कुरा रहा था शायद परमात्मा फिर अबकी बार।
ऐसा ही तो हुआ है हर एक बार।
हे मानव देखेंगे अगर कुछ पुण्य किया होगा तो
फिर से मानव जन्म मिल जाएगा।
अन्यथा 84 लाख योनियों में जाने से तुझे कौन रोक पाएगा।
हे मानस पुत्रों आओ आज से ही सब मिलकर प्रभु का नाम भजनों से जपें।
परमात्मा हो जाएंगे प्रसन्न तो हो सकता है हम इस भव बंधन से अबकी बार तो छुटें।