कल्पना
कल्पना
मन अशांत है,
पर दिल शांत है,
इसलिए नहीं कि मैं जा रही हूँ,
पर इसलिए कि घबरा रही हूँ।
अब ईश्वर से मिलना है,
फैसला मेरा होना है,
याद नहीं कुछ अच्छे कर्म अपने
गुनाह अपने कहाँ तक गिनाऊँ।
इस दुनिया में जीना मुश्किल है,
पर जाना और भी मुश्किल है,
स्वर्ग या नरक कुछ भी मालूम नहीं
आत्मा भटके तो भी मुश्किल है।
मन समझने को तैयार नहीं,
इस यात्रा में होगा कोई साथ नहीं,
कहाँ आत्मा भटकेगी.....कैसे,
आँधी पानी से निपटेगी।
साथ क्या क्या जाएगा हमारे,
ये तो हमने सोचा ही नहीं....
मात्र भयावह कल्पना नहीं ये ,
हकीकत को पहचाना नहीं।
याद आएंगे मुझे जब अपने,
क्या महसूस करेंगे हम ?
साँस नहीं ले सकेंगे तो क्या,
साँसों को समेटकर रखेंगे हम।
जब रोते होंगे बाशिंदे अपने,
तो अपने भी आँसू आयेंगे क्या ?
सुना नहीं सकते होंगे अपनी,
पर कुछ बातें हम भी करते होंगे।।
